Saturday 30 August 2014

इबादत




जिस्म जलता रहा रूह पिघलती रही

रात भर उसने हमें सोने ना दिया

मैं भी तनहा रहा वोह भी तनहा रहा

इबादत ने हमें रोने ना दिया

 

मैं तेरी नज़्म गीतों को गाता रहा

तू सुरों में सुरों को मिलाता रहा

मैं मदहोश था वोह भी मदहोश था

मैं  ख़ुशी की तराने गाता रहा

 

दिल की आवाज से जो पुकारा उसे

वोह भी आवाज देकर बुलाता रहा

मेरे सपनो के मालिक हंसी जादूगर

अपनी झोली में ले कर रिझाता रहा
harivanshsharma@gmail.com

Tuesday 26 August 2014

धर्म और न्याय (कानून) में कोई अंतर नहीं है,धर्म ही दुसरे शब्दों में न्याय है.

 
 
धर्म और न्याय (कानून) में कोई अंतर नहीं है,धर्म ही दुसरे शब्दों में न्याय है.
कानून में शंशोधन होते रहते है,और वोह शंशोधन कानून की बेहतरीन के लिए
लागु किये जाते है,ताकि समाज में न्याय प्रणाली बनी रहे.मानवता बरकरार रहे.
 
 
मुल्क  बदले,महजब बदले,लोग धर्मान्तरित  हुवे, - इश्वर उपासना  अल्लाह की इबादत,
येशु की प्रार्थना बन गई, बुद्ध,महवीर,जरदस्तु,कन्फुशियस,हजरतमूसा,ईसा,मुहम्द पैगम्बर,
देवदूत  सभी आये,मानव समाज में मानवता के,भीतर छुपी त्रुटियाँ निकाली धर्म सुधारक
बने, और इसी  समाज ने उन्हें धर्मप्रवर्तक बना  दिया. मानव धर्म मानवता से  निकल  
कर नए धर्म  की  स्थापना  करने लगा. सभी महापुरुष,उपदेशक,जग कल्याण कर चले
गये,फिर भी वोह  इन्सान के दिलो-दिमाग से शैतान को नहीं निकाल पाए. वाह ! इश्वर,
वाह रे ! रब,तूने यह कैसा इन्सान बनाया शक्ल सूरत, नैन-नक्श,मॉस-मज्जा,एक सा,
रक्त-खून,भर दिया,जिगर भी एक सा बनाया,फिर दिमाग में क्या फितूर भर दिए, की वोह
एक साथ न रह पाए. महजब बना कर यह भी हिदायत दे दी मजबूत बनो,और फिर
महजबी कौमे ताकतवर बनने लगी.वोह हमें एक खूंटे से बाँध कर हमारी परिधि निश्चित
कर गए,ना इसके बाहर निकलो,और ना किसी को बाहर निकलने दो.इसी दरमयान दुश्मनी
का दौर शुरू हुवा,सियासते खड़ी हुई,जंग छिड पड़े,मार-काट आपसी दुश्मनी जहर उगलने लगी
आज हर तरफ त्राहि-त्राहि,अराजकता फैलने लगी. हम उस एक दौर से गुजर रहे है जहाँ
मानवता खतरे में है.वोह दिन दूर नहीं है,जब सभी के हाथ उठेगे, प्रार्थना के लिए दुवा के
लिए,इबादत के लिए, ऐ मेरे ईश्वर, मेरे मालिक,मेरे मौला,मेरे मसीहा. बचा लो हमें इस
बर्बादी से- तू ही एक सहारा है. और फिर कोई पैदा होगा धर्मपरिवर्तक ! मानव जाती के
कल्याण हेतु समाज सुधारक !

Thursday 24 July 2014

जीवन क्रम


 

दिन बीते  राते  बीती  
साल  कई  बीत  गए

उठी सुबह की लाली
नया संदेसा लिए हुए

जीवन  की  राह  पर
हर  मोड़ -चोराहे पर
देखे कितने सुन्दर सपने
सुन्दर  सपने  सजग रहे

हुआ   अनुभव   इस
उच्छ्वसित अवधि मैं

जीवन क्या है  
कैसा   है
सुन्दर है  सुन्दरतम है
पर दुःख भी मिश्रित है

दुःख-सुख के मिश्रण
का             यौगिक
जीवन भी क्रीडा स्थल है |
कभी हार होती है दुःख की 
कभी जीत जाती है खुशिया

 

 

 @ १९६५ हरिवंश शर्मा

Tuesday 15 July 2014


कामिनी


सदियों की अविरल तपस्या
अरे कामिनी भंग न करना
यह  मन बस  एक  पंछी है
अपनी डाली बदल न डाले
तेरे  पाँव  की  थिरकन  से
ब्रह्म  मेरा  मचल  न  जाये

विच्छिन्न विरत जग से
प्यासा ही जब दूर हुवा
तेरे रूप  गंध  यौवन ने
आज  मुझे  तृप्त  किया   

मैं  सोचु यह हार है मेरी
नहीं नहीं कैसी विडंबना
क्या तपस्वी के हृदय मैं
होती नहीं काम वासना

शिव ने भी तन से अपने
अर्ध अंग को पूर्ण किया
डोल उठा हृदय विश्व का
मेनका  ने  स्पर्श  किया

त्याग कर अपना यौवन
अरे त्यागी क्या पायेगा
प्यार  के  रस  मैं   रंगी
ललना  को  ठुकराएगा

पाप   है    !   यह   पाप  !
क्या होगी सकल साध तेरी
प्रकृति रचित   कामिनी की

आराधना रह  जाये  अधूरी



Thursday 10 July 2014

प्रेम धारा

तेरी चाहत में

मेरा प्यार है

तेरी चाहत में


प्यार शर्माता है

घबराता है !

ह्रदय  से फूटती है

प्रेम की धारा

विचारों  में

प्रवाहित होकर

नहला देती है

मन को

मस्तिष्क  को

रूह को

सारे बदन को

और मैं  पवित्र

हो जाता हूँ

 

तेरे प्यार में

समां जाता हूँ

उस धारा में

शांत हो जाता है

यह अधीर मन

पाता हूँ अपने समक्ष

भगवान को

मेरा प्यार मेरी पूजा है

धारा को बहने दो

उसे समा जाने दो

उस सरिता में

उसे बहने दो सागर

की ओर

समा जाने दो

उसे महासागर में

 

धारा बन गई राधा

मिल गई क्षीर सागर में

अपने प्रिय से

प्रिय से बन गई

प्रियतमा

विश्व भी समा गया उस में

कृष्ण भी समा गया उस मे

 

मेरा प्यार

शर्माता नहीं

घबराता नही

मुरझाता नहीं

ऐ मेरे प्रेम की धारा

तू बन जा राधा

ओर मुझे कृष्ण बना दे

मुझे अमरत्व नहीं

मुक्ति दिला दे




 
 

Saturday 28 June 2014

मधुर मिलन

 
मधुर मिलन की मधुर स्मृति
गीत बिखरे प्रणय बंधन से
गूंज उठे फिर तार हृदय के
नयन द्वार खुल गए
प्रिये आन बसों नयनन मैं
 
अधरों पर तेरे नाम की गुंजन
अल्को मैं अश्रु सावन के
दर्पण है यह तेरे मन का
मन के दीप जलाऊ
प्रिये आन बसों नयनन में
 
रवि किरणों के छुटके रंग से
कलियों के घूँघट खुल जाये
ओर रंगों से सज कर वायु
सुध लेने जब आये,
तेरी याद वोह संग ले आये
प्रिये आन बसों नयनन में.
 
प्रेम के वश हुई मै दीवानी
प्रीत करू पर रीत न जानू
जान जाऊ जब मर्म भेद यह
पाऊ तुम्हे मैं स्वामी
प्रिये आन बसों नयनन में
 
साँझ ढले जब वृन्दावन मैं
यमुना की गाती लहरन में
प्रिये तुम मुझे बुलाओ
अरी तुम बंसी से न रिझाओ
 
कजरारी आँखे अम्बर की
मोती लिए झूमे गगन में
भाग्य जगे जब तुम आ जाओ
सावन न बिता जाये
प्रिये आन बसों नयनन मैं