Thursday, 24 July 2014

जीवन क्रम


 

दिन बीते  राते  बीती  
साल  कई  बीत  गए

उठी सुबह की लाली
नया संदेसा लिए हुए

जीवन  की  राह  पर
हर  मोड़ -चोराहे पर
देखे कितने सुन्दर सपने
सुन्दर  सपने  सजग रहे

हुआ   अनुभव   इस
उच्छ्वसित अवधि मैं

जीवन क्या है  
कैसा   है
सुन्दर है  सुन्दरतम है
पर दुःख भी मिश्रित है

दुःख-सुख के मिश्रण
का             यौगिक
जीवन भी क्रीडा स्थल है |
कभी हार होती है दुःख की 
कभी जीत जाती है खुशिया

 

 

 @ १९६५ हरिवंश शर्मा

Tuesday, 15 July 2014


कामिनी


सदियों की अविरल तपस्या
अरे कामिनी भंग न करना
यह  मन बस  एक  पंछी है
अपनी डाली बदल न डाले
तेरे  पाँव  की  थिरकन  से
ब्रह्म  मेरा  मचल  न  जाये

विच्छिन्न विरत जग से
प्यासा ही जब दूर हुवा
तेरे रूप  गंध  यौवन ने
आज  मुझे  तृप्त  किया   

मैं  सोचु यह हार है मेरी
नहीं नहीं कैसी विडंबना
क्या तपस्वी के हृदय मैं
होती नहीं काम वासना

शिव ने भी तन से अपने
अर्ध अंग को पूर्ण किया
डोल उठा हृदय विश्व का
मेनका  ने  स्पर्श  किया

त्याग कर अपना यौवन
अरे त्यागी क्या पायेगा
प्यार  के  रस  मैं   रंगी
ललना  को  ठुकराएगा

पाप   है    !   यह   पाप  !
क्या होगी सकल साध तेरी
प्रकृति रचित   कामिनी की

आराधना रह  जाये  अधूरी



Thursday, 10 July 2014

प्रेम धारा

तेरी चाहत में

मेरा प्यार है

तेरी चाहत में


प्यार शर्माता है

घबराता है !

ह्रदय  से फूटती है

प्रेम की धारा

विचारों  में

प्रवाहित होकर

नहला देती है

मन को

मस्तिष्क  को

रूह को

सारे बदन को

और मैं  पवित्र

हो जाता हूँ

 

तेरे प्यार में

समां जाता हूँ

उस धारा में

शांत हो जाता है

यह अधीर मन

पाता हूँ अपने समक्ष

भगवान को

मेरा प्यार मेरी पूजा है

धारा को बहने दो

उसे समा जाने दो

उस सरिता में

उसे बहने दो सागर

की ओर

समा जाने दो

उसे महासागर में

 

धारा बन गई राधा

मिल गई क्षीर सागर में

अपने प्रिय से

प्रिय से बन गई

प्रियतमा

विश्व भी समा गया उस में

कृष्ण भी समा गया उस मे

 

मेरा प्यार

शर्माता नहीं

घबराता नही

मुरझाता नहीं

ऐ मेरे प्रेम की धारा

तू बन जा राधा

ओर मुझे कृष्ण बना दे

मुझे अमरत्व नहीं

मुक्ति दिला दे