Saturday 12 December 2015

लक्ष्मी पूजन

इस बार लक्ष्मी पूजन के उपरांत
लक्ष्मीजी से ही सवाल कर बैठे.
लक्ष्मी तेरा धर्म क्या है ?
रंक के हाथों को चूमती,
राजदरबार में प्रविष्ट करती हो,
कभी महाविद्वान पंडित की हथेली गरमाती हुई,
मलेच्छों के संग रमती हो,
जुआखाने,वेश्यालय में खूब खनकती हो,
ओर फिर, मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर, गुरूद्वारे
देवो के चरणों पर समर्पित होती हो.
स्वयं मै ही कितनी भाग्यशाली हो.
यह सारा जग तुझसे ही चलित होता है.
कभी कभार विस्मय इस बात का भी होता है.
की तुम्हे भी तो कोई संचालित करता है ?
चंचला कुच्छ न बोली चली गई –
कुछ देर उपरांत मस्तिस्क के छठे द्वार से प्रविष्ट हुई.

कहने लगी !

मैं भी मानव जाती के अनुसार, सुख, दुःख,
हर्षउल्हास पीड़ा भोगती हूँ .
मेरा कोई स्थाई निवास नही है,इसलिय चंचला भी हूँ .
जब तिजोरियो में बंद रहती हु तो मेरी भी साँस घुटने लगती है.
जो मुझे जिस रूप मै अपनाता है वही मेरा धर्म हो जाता है.

यानि की जब

तुम जब मुस्लिम के पास जाती हो तो मुस्लमान हो जाती हो,
हिन्दू के पास जाती हो हिन्दू हो जाती हो।
इसाई के पास जाती हो क्रिस्चन हो जाती हो।
क्या तुम निरंतर अपना धर्म बदलती रहती हो ?

मानव जाती के यथाकथित धर्म मुझ से इतने
मजबूर भयभीत है की मेरा बहिष्कार नही कर सकते.
मेरी खनक,मेरी चमक ही धर्माधिकारियो,राज्यधिकारियों
सम्पूर्ण मानव जाती को भ्रमित करती है.

मै ही स्वार्थ हु,
मै ही त्याग हु,
मै ही बल हु,
मै ही छल हु,
मै ही कपट हु,
मै ही विध्वंशकारी हु,
मै ही निर्माणाधार हु.


श्री लक्ष्मी जी के इन वचनों से मै इतना भयभीत हो गया उन्हें मानाने के लिए
उनकी स्तुति मै कोई किसी तरह की कसर न छोड़ी.
मन्त्र, तंत्र, श्लोक, अर्पितकर दिए.
क्या करे !
आखिर मानव परिस्थियों का दास है.


Saturday 30 August 2014

इबादत




जिस्म जलता रहा रूह पिघलती रही

रात भर उसने हमें सोने ना दिया

मैं भी तनहा रहा वोह भी तनहा रहा

इबादत ने हमें रोने ना दिया

 

मैं तेरी नज़्म गीतों को गाता रहा

तू सुरों में सुरों को मिलाता रहा

मैं मदहोश था वोह भी मदहोश था

मैं  ख़ुशी की तराने गाता रहा

 

दिल की आवाज से जो पुकारा उसे

वोह भी आवाज देकर बुलाता रहा

मेरे सपनो के मालिक हंसी जादूगर

अपनी झोली में ले कर रिझाता रहा
harivanshsharma@gmail.com

Tuesday 26 August 2014

धर्म और न्याय (कानून) में कोई अंतर नहीं है,धर्म ही दुसरे शब्दों में न्याय है.

 
 
धर्म और न्याय (कानून) में कोई अंतर नहीं है,धर्म ही दुसरे शब्दों में न्याय है.
कानून में शंशोधन होते रहते है,और वोह शंशोधन कानून की बेहतरीन के लिए
लागु किये जाते है,ताकि समाज में न्याय प्रणाली बनी रहे.मानवता बरकरार रहे.
 
 
मुल्क  बदले,महजब बदले,लोग धर्मान्तरित  हुवे, - इश्वर उपासना  अल्लाह की इबादत,
येशु की प्रार्थना बन गई, बुद्ध,महवीर,जरदस्तु,कन्फुशियस,हजरतमूसा,ईसा,मुहम्द पैगम्बर,
देवदूत  सभी आये,मानव समाज में मानवता के,भीतर छुपी त्रुटियाँ निकाली धर्म सुधारक
बने, और इसी  समाज ने उन्हें धर्मप्रवर्तक बना  दिया. मानव धर्म मानवता से  निकल  
कर नए धर्म  की  स्थापना  करने लगा. सभी महापुरुष,उपदेशक,जग कल्याण कर चले
गये,फिर भी वोह  इन्सान के दिलो-दिमाग से शैतान को नहीं निकाल पाए. वाह ! इश्वर,
वाह रे ! रब,तूने यह कैसा इन्सान बनाया शक्ल सूरत, नैन-नक्श,मॉस-मज्जा,एक सा,
रक्त-खून,भर दिया,जिगर भी एक सा बनाया,फिर दिमाग में क्या फितूर भर दिए, की वोह
एक साथ न रह पाए. महजब बना कर यह भी हिदायत दे दी मजबूत बनो,और फिर
महजबी कौमे ताकतवर बनने लगी.वोह हमें एक खूंटे से बाँध कर हमारी परिधि निश्चित
कर गए,ना इसके बाहर निकलो,और ना किसी को बाहर निकलने दो.इसी दरमयान दुश्मनी
का दौर शुरू हुवा,सियासते खड़ी हुई,जंग छिड पड़े,मार-काट आपसी दुश्मनी जहर उगलने लगी
आज हर तरफ त्राहि-त्राहि,अराजकता फैलने लगी. हम उस एक दौर से गुजर रहे है जहाँ
मानवता खतरे में है.वोह दिन दूर नहीं है,जब सभी के हाथ उठेगे, प्रार्थना के लिए दुवा के
लिए,इबादत के लिए, ऐ मेरे ईश्वर, मेरे मालिक,मेरे मौला,मेरे मसीहा. बचा लो हमें इस
बर्बादी से- तू ही एक सहारा है. और फिर कोई पैदा होगा धर्मपरिवर्तक ! मानव जाती के
कल्याण हेतु समाज सुधारक !