Saturday 30 August 2014

इबादत




जिस्म जलता रहा रूह पिघलती रही

रात भर उसने हमें सोने ना दिया

मैं भी तनहा रहा वोह भी तनहा रहा

इबादत ने हमें रोने ना दिया

 

मैं तेरी नज़्म गीतों को गाता रहा

तू सुरों में सुरों को मिलाता रहा

मैं मदहोश था वोह भी मदहोश था

मैं  ख़ुशी की तराने गाता रहा

 

दिल की आवाज से जो पुकारा उसे

वोह भी आवाज देकर बुलाता रहा

मेरे सपनो के मालिक हंसी जादूगर

अपनी झोली में ले कर रिझाता रहा
harivanshsharma@gmail.com

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